आर्य और काली छड़ी का रहस्य-21
अध्याय-7
कोन है वो
भाग-2
★★★
दोपहर को खाने का वक्त हो चुका था। खाने का वक्त होते ही आश्रम के सारे विद्यार्थी भोजनालय में जमा होने लगे थे। वहां आर्य और आयुध पहले ही आ गए थे। हिना उनके आने के बाद आई। उसके बाल जालो से भरे हुए थे।
आयुध उसे देखते ही बोला “क्या तुम्हें यह नहीं पता सफाई करने के बाद नहाना भी होता है। देखो जरा, अपनी खुद की हालत तो देखो। खुद भी गंदगी से भरी हुई हो और बालों का भी बुरा हाल कर रखा है।”
“तुम चुप रहो..” हिना ने अपने भाई को चुप करवा दिया। वह एक तरफ जाकर आर्य के बगल में बैठ गई। “मुझसे आज इस बारे में कोई भी बात मत करो। मेरा दिन काफी बुरा गया। मुझे लगा था किताबों की सफाई करना कोई बड़ी सजा नहीं है, मगर जब किताबों की सफाई करने लगी तो पता चला अचार्य वर्धन ने मुझे यह सजा क्यों दी। उफफ ढेर सारी किताबें, नफरत हो गई है अब तो किताबों से। उनसे जितनी धुल साफ कर रही थी वह उतनी ही गंदी हो रही थी। जादुई किताबों ने सालों की गंदगी अपने पास इकट्ठा कर रखी थी। जो किताबें देखने से कम गंदी लग रही थी, उनसे भी बाल्टी भरकर कचरा निकला।”
आयुध को यह सुनकर हैरानी हुई। “हमारे आश्रम का पुस्तकालय इस तरह का है! मुझे तो इसका पता ही नहीं था। मैं अब तक उसे सिर्फ आम सा पुस्तकालय मानता आया था। एक ऐसा आम सा पुस्तकालय जो बोरिंग मोटी और बदबूदार किताबों से भरा हुआ था।”
“लेकिन वह जादूई है।” हिना बोली “और तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूं, मुझे भी यह बात आज पता चली है। तब जब मुझे किताबों से ढेर सारी धुल निकलती हुई दिखी। इससे पहले मैं भी उन्हें आम किताबें मानती थी। और पुस्तकालय को भी आम ही मानती थी।”
“चलो अच्छा हुआ... कम से कम हम दोनों का वहम तो टूटा।” आयुध बोलकर खाने का इंतजार करने लगा। आज उसने खाना परोसने से छुट्टी कर रखी थी, वरना वह सभी को खाना परोस कर ही खाना खाने के लिए बैठता था। जल्द ही तीनों के केलों के पत्तों पर खाना रख दिया गया। तीनों ही खाना खाने लगे।
खाना खाते खाते हिना आर्य से बोली “आर्य, मैं पुस्तकालय की सफाई करते वक्त तुम्हारी बातों के बारे में सोच रही थी। तुमने सुबह कहा था हमें कोई भी बात करने से पहले सबूत चाहिए। जिसके लिए तुमने हमें दो रास्ते बताए थे। पहला रास्ता यह है कि हम सभी सात अचार्यों पर नजर रखें। जबकि दूसरा रास्ता हम किसी ऐसी चीज का पता लगाएं जो हमारे लिए सबूत का काम करें।”
“हां मुझे यह अच्छे से याद है।” उसकी बात सुनने के बाद आर्य ने कहा “मैंने सुबह इसी के चलते तुम्हें किले वाली बात करने नहीं दी थी। और यह कहा था कि हमें सबूत के बाद बात करनी चाहिए।”
“हां तो मैंने इसमें कुछ और भी सोचा है।” हिना खाना खाते हुए बोली “तुम कह सकते हो कि मैंने तुम्हारे उस आइडिया को थोड़ा बेहतर बना दिया है। कुछ खास बदलाव नहीं किए बस एक चीज बदली है।”
“और वह क्या?”
“देखो तुमने सात अचार्यों पर नजर रखने की सलाह दी थी। मगर हम सिर्फ तीन ही लोग हैं। इसलिए तुम भी यह बात भली-भांति जानती हो कि हम एक साथ सभी सात आचार्यों पर नजर नहीं रख सकते। तो ऐसे में मैंने सोचा क्यों ना हम सात आचार्यों पर नजर रखने की बजाय सीधे किले पर ही नजर रखें। इससे यह फायदा होगा कि हम बिना सात आचार्यों पर नजर रखें यह पता लगा लेंगे कौन सा अचार्य किले में जाता है।”
आयुध के खाना खाने की रफ्तार धीमी हो गई थी। वह हिना कि इस बात पर सोचता हुआ बोला “यह तो तुमने एक बेहतर आइडिया दिया है। हम काफी आसान तरीके से गद्दार आचार्य के बारे में पता लगा लेंगे। किले पर नजर रखना सात आचार्यों पर नजर रखने से ज्यादा आसान है। और इसमें भी हम एक साथ नजर ना रखकर बारी-बारी नजर रख सकते हैं। कभी मैं, कभी आर्य, और कभी तुम हिना।”
हिना ने अपनी आंखें मटकाई “इस तरह के काम के लिए तो मैं हमेशा तैयार रहती हूं। वैसे भी यह कमरे में बैठकर ऊबने से तो ज्यादा बेहतर है। बाहर की ठंड भी मुझे पसंद है।”
आयुध और हिना दोनों ही आर्य की तरफ देखने लगे। दोनों ने एक साथ आर्य से पूछा “अब तुम्हारा क्या विचार है? तुम इससे राजी हो या नहीं?” फिर हिना अकेली बोली “तुम यह मत समझना मैं तुम्हारा आईडिया चुरा रही हूं। आइडिया तुम्हारा ही रहेगा। बस मैंने इसमें थोड़ा सा चेंज कर इसे बढ़िया किया है। किले पर नजर रखना हमारे लिए ज्यादा फायदेमंद साबित होगा।”
आर्य हल्का सा मुस्कुराया “नहीं वह बात नहीं है। मतलब आईडिया चाह तुम्हारा हो चाहे मेरा, बात तो एक ही है। इसमें भला तो हमारे आश्रम का ही हो रहा है। इससे बढ़िया और कौन सी बात होगी कि हम आश्रम के एक अंधेरे से मिले हुए आचार्य का पता लगा लेंगे। मैं भी तुम्हारी इस योजना से सहमत हूं। और जैसा तुम कहोगी वैसा ही करूंगा।”
आयुध खुशी से थोड़ा तेज आवाज में बोला “यह हुई ना बात।” उसके बोलते ही आश्रम के बाकी के लड़के उसे घूर घूर कर देखने लगे। कुछ लड़कियां भी थी जो उसे घूर घूर कर देख रही थी। आयुध ने अपने बालों में हाथ फेरा और चुपचाप खाना खाने लग गया। बाकी के लोग भी अपने अपने खाने की तरफ लग गए। जब सब वापिस खाना खाने लगे तो हिना धीमे स्वर में बोली “अभी शाम को युद्ध क्षेत्र के बाद, जैसे ही हम खाना खाएंगे, वैसे ही हम सब वापिस आश्रम की दीवार पर मिलेंगे। आश्रम के सामने वाली दीवार पर जहां से किले के बारे में साफ साफ पता लग जाता है। वहां से चीजें भी साफ दिखती है।”
आयुध और आर्य दोनों ने इसे लेकर सहमति भर दी। दोनों ही रात को आश्रम की दीवार पर मिलने के लिए तैयार थे।
★★★
दोपहर का खाना खाने के बाद सब ने आराम किया। इसके बाद युद्ध क्षेत्र में अभ्यास करने के बाद सब रात को खाना खाने लगे। खाना खाने के बाद आर्य और आयुध जल्दी अपने कमरे में आ गए और आकर दीवार पर जाने की तैयारी करने लगे।
आयुध बड़े से कंबल को समेटता हुआ बोला “ऊपर वाले से इस बात की दुआ करना कि रात को बर्फबारी ना हो। बर्फबारी होने पर हम ज्यादा देर तक बाहर नहीं ठहर पाएंगे। और तुम ऊपर वाले से यह दुआ भी करना कि ठंड भी ज्यादा ना हो। मैंने अपने लिए बड़ा कंबल समेट लिया है, तुम भी एक बड़ा कंबल समेट लेना। रात को कंबल के बिना ठंड नहीं रुकने वाली।”
“तुम उसकी फ़िक्र मत करो..” आर्य ने अपने लिए एक छोटा कंबल उठा लिया “ठंड जैसी चीजें हमारे रास्ते में रोड़ा नहीं बनने वाली। मैं तो इस पर कभी ध्यान ही नहीं देता।”
“यह तो अच्छी बात है...” आयुध ने उसकी बात को नजरअंदाज कर दिया “मैं पीने का पानी रख लेता हूं। खाने के लिए काफी सारे फल है उन्हें भी पैक कर लेता हूं।”
दोनों यह सब कर रहे थे कि हिना उनके कमरे का दरवाजा खोलते हुए अंदर दाखिल हो गई। अंदर उसने आयुध को तैयारीयां करते हुए देखा। यह देखते ही उसने आयुध से कहा “तुम तो ऐसे सामान पैक कर रहे हो जैसे हम दीवार पर नजर रखने के लिए नहीं, बल्कि पिकनिक मनाने के लिए जा रहे हैं। इतना सामान तो कोई पिकनिक मनाते वक्त भी पैक नहीं करता।”
आयुध हंसने लगा “यह बात तुम कह रही हो मेरी बहन। वो जिसे ठंडी हवा देखते ही अपनी बाहें फैलाकर खड़े रहने की आदत है।”
हिना यह सुनते ही एक बार के लिए आर्य से अपनी नजरें चुराने लगी। वह यह सोच रही थी कि कहीं आर्य यह ना सोचने लग जाए कि उसकी इस आदत के बारे में सभी को पता है। वैसे हिना को जानने वाले तो उसकी इस आदत के बारे में जानते थे। उसने बात को संभालते हुए कहा “हां तो मेरी आदत है। मुझे अच्छी लगता है यह सब। ठंडी हवा में खड़े होने की बात ही अलग है।”
“आर्य...,” आयुध ने उसका नाम लिया “शायद मेरी बहन ने तुम्हें बताया नहीं होगा की वह दिमाग से थोड़ा पागल है। तुम जरा इससे अपना ध्यान रखना, कहीं ऐसा ना हो आगे चलकर तुम भी पागल हो जाओ। फिर मुझे एक साथ दो दो पागलों को संभालना पड़ेगा।”
आर्य यह सुनकर हंस पड़ा वही हिना ने आयुध को जल्दी जल्दी चलने के लिए कहा। जल्द ही तीनों आर्य के कमरे से बाहर आ गए। इस वक्त तकरीबन 9:30 का वक्त हो रहा था। तीनों जैसे ही बाहर आए उन्हें सरोवर के पास घंटी की आवाज सुनाई देने लगी।
हिना घंटी की आवाज सुनते ही बोली “आश्रम के विद्यार्थियों को सरोवर पर इकट्ठा होने के लिए कहा जा रहा है। जरूर आश्रम के आचार्य कोई नई जानकारी देने जा रहे हैं।”
“इकट्ठा होना और नई जानकारी देना..?” आर्य हिना को भी सवालिया नजरों से देख रहा था और आयुध को भी।
आयुध समझाते हुए बोला “मैं बताता हूं तुम्हें आर्य, दरअसल यहां आश्रम में आचार्यों को जब भी कोई नई जानकारी देनी होती है तब वह इस तरह से घंटी बजाकर सभी विद्यार्थियों को सरोवर के पास इकट्ठा करते हैं। सरोवर के पास घंटी वाली वह जगह विद्यार्थियों को जानकारी देने के लिए बनी है। ऐसी जानकारी जो आकस्मिक होती है और विद्यार्थियों के लिए किसी नई चीज की तरह होती है। एक तरह से कहूं तो आश्रम के आचार्य हमें सरप्राइस देते हैं।”
“ओह..!!” आर्य ने अपना सिर हिला दिया। सारे ही विद्यार्थी जल्दी जल्दी अपने कमरों से निकलकर सरोवर की तरफ जा रहे थे।
हिना ने दोनों को कहा “हम दोनों अभी सामान वापस रख देते हैं। पहले जाकर देखते हैं क्या नई जानकारी दी जा रही है, इसके बाद दीवार पर जाने की तैयारी करते हैं।”
दोनों ने हामी भर दी। इसके बाद सभी वापस आर्य के कमरे में गए और वहां सामान को रख दिया। सामान रखने के बाद तीनों ही सरोवर की तरफ चल पड़े। सरोवर पर अचार्य ज्ञरक आचार्य वीरसेन के साथ एक ऊंची जगह पर खड़े हुए थे। उनके हाथ में एक लाल रंग का कागज था जो सुनहरे रंग के धागे से बंधा हुआ था। वह उसे खोलकर उसे पढ़कर ही कुछ नया बताने वाले थे। तीनों ही वहां जाकर विद्यार्थियों की भीड़ में खड़े हो गए। जितने भी विद्यार्थी थे सबको इसी बात का इंतजार था कि अब आचार्य कौन सी नई जानकारी देने वाले हैं।
★★★
Rohan Nanda
20-Dec-2021 10:56 PM
Good...
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